(ऐ नबी!) जो लोग[113] अपने कृत्यों पर प्रसन्न हो रहे हैं और चाहते हैं कि उन्हें उन कामों के लिए (भी) सराहा जाए, जो उन्होंने नहीं किए हैं, तो आप हरगिज़ यह न समझें कि वे यातना से बच जाएँगे। उनके लिए तो दुःखदायी यातना है।
सूरह आल-ए-इमरान आयत 188 तफ़सीर
113. अबू सईद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि कुछ मुनाफ़िक़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में, आप युद्ध के लिए निकलते तो आपका साथ नहीं देते थे। और इसपर प्रसन्न होते थे और जब आप वापस होते, तो बहाने बनाते और शपथ लेते थे। और जो नहीं किया है, उसकी सराहना चाहते थे। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4567)
सूरह आल-ए-इमरान आयत 188 तफ़सीर