अथवा (उनके कर्म) उन अँधेरों के समान हैं, जो अत्यंत गहरे सागर में हों, जिसे एक लहर ढाँप रही हो, जिसके ऊपर एक और लहर हो, जिसके ऊपर एक बादल हो, कई अँधेरे हों, जिनमें से कुछ, कुछ के ऊपर हों। जब (इन अँधेरों में फँसा हुआ व्यक्ति) अपना हाथ निकाले, तो क़रीब नहीं कि उसे देख पाए। और वह व्यक्ति जिसके लिए अल्लाह प्रकाश न बनाए, तो उसके लिए कोई भी प्रकाश[36] नहीं।
Surah Ayat 40 Tafsir (Commentry)
36. अर्थात काफ़िर, अविश्वास और कुकर्मों के अंधकार में घिरा रहता है। और ये अंधकार उसे मार्गदर्शन की ओर नहीं आने देते।
Surah Ayat 40 Tafsir (Commentry)