और यदि अल्लाह चाहता, तो अवश्य उन्हें एक समुदाय[6] बना देता। परंतु वह जिसे चाहता है अपनी रहमत में दाख़िल करता है और ज़ालिमों का न तो कोई दोस्त है और न कोई मददगार।
सूरह अश-शूरा आयत 8 तफ़सीर
6. अर्थात एक ही सत्धर्म पर कर देता। किंतु उसने प्रत्येक को अपनी इच्छा से सत्य या असत्य को अपनाने की स्वाधीनता दे रखी है। और दोनों का परिणाम बता दिया है।
सूरह अश-शूरा आयत 8 तफ़सीर