कुरान - 9:122 सूरह अत-तौबा हिंदी अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

۞وَمَا كَانَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ لِيَنفِرُواْ كَآفَّةٗۚ فَلَوۡلَا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرۡقَةٖ مِّنۡهُمۡ طَآئِفَةٞ لِّيَتَفَقَّهُواْ فِي ٱلدِّينِ وَلِيُنذِرُواْ قَوۡمَهُمۡ إِذَا رَجَعُوٓاْ إِلَيۡهِمۡ لَعَلَّهُمۡ يَحۡذَرُونَ,

और संभव नहीं कि ईमान वाले सब के सब निकल पड़ें, तो उनके हर गिरोह में से कुछ लोग क्यों न निकले, ताकि वे धर्म में समझ हासिल करें और ताकि वे अपने लोगों को डराएँ, जब वे उनके पास वापस जाएँ, ताकि वे बच जाएँ।[56]

सूरह अत-तौबा आयत 122 तफ़सीर


56. इस आयत में यह संकेत है कि धार्मिक शिक्षा की एक साधारण व्यवस्था होनी चाहिए। और यह नहीं हो सकता कि सब धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए निकल पड़ें। इसलिए प्रत्येक समुदाय से कुछ लोग जाकर धर्म की शिक्षा ग्रहण करें। फिर दूसरों को धर्म की बातें बताएँ। क़ुरआन के इसी संकेत ने मुसलमानों में शिक्षा ग्रहण करने की ऐसी भावना उत्पन्न कर दी कि एक शताब्दी के भीतर उन्होंने शीक्षा ग्रहण करने की ऐसी व्यवस्था बना दी जिसका उदाहरण संसार के इतिहास में नहीं मिलता।

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