और तू तो बस हमारे ही जैसा एक मनुष्य[30] है और निःसंदेह हम तो तुझे झूठों में से समझते हैं।
सूरह अश-शुअरा आयत 186 तफ़सीर
30. यहाँ यह बात विचारणीय है कि सभी विगत जातियों ने अपने रसूलों को उनके मानव होने के कारण नकार दिया। और जिसने स्वीकार भी किया, तो उसने कुछ युग बीतने के पश्चात् अतिशयोक्ति करके अपने रसूलों को प्रभु अथवा प्रभु का अंश बना कर उन्हीं को पूज्य बना लिया। तथा एकेश्वरवाद को कड़ा आघात पहुँचाकर मिश्रणवाद का द्वार खोल लिया और कुपथ हो गए। वर्तमान युग में भी इसी का प्रचलन है और इसका आधार अपने पूर्वजों की रीतियों को बनाया जाता है। इस्लाम इसी कुपथ का निवारण करके एकेश्वरवाद की स्थापना के लिए आया है और वास्तव में यही सत्धर्म है। ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : मूझे वैसे न बढ़ाओ जैसे ईसाइयों ने मरयम के पुत्र (ईसा) को बढ़ा दिया। निःसंदेह मैं उसका दास हूँ। अतः मुझे अल्लाह का दास और उसका रसूल कहो। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 3445)
सूरह अश-शुअरा आयत 186 तफ़सीर